धरती की यह है पीर – न है जंगल न है नीर
I. परिचय
उद्धरण “धरती की यह है पीर । न है जंगल न है नीर ॥” भारतीय संदर्भ में गहरा महत्व रखता है, जो मनुष्य और प्रकृति के बीच आंतरिक संबंध को दर्शाता है। यह निबंध इस उद्धरण के सार में तल्लीनता से उतरता है, भारत में समकालीन पर्यावरणीय प्रवचन में इसके दार्शनिक आधार और प्रासंगिकता की खोज करता है।
II. “धरती की यह है पीर” की अवधारणा
अपने सार में, “धरती की यह है पीर” यह विचार व्यक्त करता है कि पृथ्वी हमारी परम पालनहार और प्रदाता है, जो श्रद्धा और सम्मान की पात्र है। यह अवधारणा मात्र भौतिक अस्तित्व से परे है और प्रकृति के साथ एक गहरे आध्यात्मिक संबंध को दर्शाती है। भारतीय संस्कृति में, पृथ्वी को अक्सर “भूमि देवी” के रूप में व्यक्त किया जाता है, जो उर्वरता, पोषण और मातृ देखभाल का प्रतीक है।
यह उद्धरण सभी जीवन रूपों को बनाए रखने में पृथ्वी की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है और मनुष्यों के लिए प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहने की आवश्यकता पर जोर देता है। यह व्यक्तियों से मानवता और पर्यावरण के बीच अन्योन्याश्रितता को पहचानने का आग्रह करता है, जिससे प्राकृतिक दुनिया के प्रति विनम्रता और कृतज्ञता की भावना को बढ़ावा मिलता है।
III. “न है जंगल न है नीर” का प्रतीकवाद
पृथ्वी की पवित्रता का जश्न मनाते हुए, “न है जंगल न है नीर” उद्धरण में जंगलों और पानी की अनुपस्थिति ध्यान देने योग्य है। यह अनुपस्थिति प्राकृतिक संसाधनों की खतरनाक कमी और पारिस्थितिकी तंत्र के क्षरण का प्रतीक है। घटते जंगल और जल निकाय पर्यावरण असंतुलन और नाजुक पारिस्थितिक संतुलन में मानव-प्रेरित व्यवधानों को दर्शाते हैं।
वनों की अनुपस्थिति भारत के कई क्षेत्रों में व्याप्त वनों की कटाई और जैव विविधता के नुकसान को दर्शाती है। इसी तरह, जल स्रोतों की कमी देश के विभिन्न हिस्सों में जल तनाव और प्रदूषण के बढ़ते संकट की ओर इशारा करती है। ये पारिस्थितिक चुनौतियाँ न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि जीवित रहने के लिए इन संसाधनों पर निर्भर समुदायों की भलाई के लिए भी खतरा पैदा करती हैं।
IV. भारतीय संदर्भ: पर्यावरणीय चुनौतियाँ
भारत, कई अन्य देशों की तरह, तेजी से औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि से उपजी पर्यावरणीय चुनौतियों से जूझ रहा है। जलवायु परिवर्तन एक महत्वपूर्ण खतरा है, जो चरम मौसम की घटनाओं, बढ़ते तापमान और अप्रत्याशित मानसून में प्रकट होता है। इन जलवायु परिवर्तनों का कृषि, जल उपलब्धता और जैव विविधता पर दूरगामी परिणाम होते हैं, जो ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में कमज़ोरियों को बढ़ाते हैं।
कई क्षेत्रों में वनों की कटाई बेरोकटोक जारी है, जिससे आवास का नुकसान, मिट्टी का कटाव और कार्बन अवशोषण में कमी हो रही है। वनों की कमी से न केवल वन्यजीव विविधता ख़तरे में पड़ती है, बल्कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भी बढ़ता है। इसके अलावा, जल की कमी एक गंभीर समस्या के रूप में उभर रही है, जो अत्यधिक दोहन, प्रदूषण और अकुशल जल प्रबंधन प्रथाओं के कारण और भी गंभीर हो गई है। नदियों और भूजल का प्रदूषण सभी के लिए स्वच्छ और सुलभ जल आपूर्ति सुनिश्चित करने की चुनौतियों को और बढ़ा देता है। इन पर्यावरणीय खतरों के जवाब में, भारत सरकार ने प्रमुख पर्यावरणीय चिंताओं को दूर करने के लिए स्वच्छ भारत मिशन, राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन और जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना जैसी पहल शुरू की हैं। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को बढ़ाना, टिकाऊ कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना है। इसके अतिरिक्त, नागरिक समाज संगठनों और जमीनी स्तर के आंदोलनों ने जागरूकता बढ़ाने, नीति सुधारों की वकालत करने और स्थानीय संरक्षण परियोजनाओं को लागू करने के प्रयासों को संगठित किया है।
निष्कर्ष , “धरती की यह है पीर । न है जंगल न है नीर ॥” उद्धरण मानवता के गहन जुड़ाव का सार प्रस्तुत करता है।
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स.क्र वरिष्ठ वर्ग (कक्षा 9,10, 11 एवं 12 ) | स.क्र कनिष्ठ वर्ग (कक्षा 5,6,7 एवं 8 ) |
1. जल, जंगल और जमीन की बढ़ती समस्या 2. मनुष्य और प्रकृति एक दूसरे के पूरक है 3. प्रकृति की धरोहर जल, जमीन और जंगल 4. प्रदूषण – कारण एवं निवारण 5. राष्ट्रीय हरित कोर – ईको क्लब 6. विश्व पर्यावरण दिवस 7. यदि पानी हुआ बर्बाद तो हम कैसे रहेंगे आबाद 8. हरित उत्पाद 9. मोगली का परिवार 10. प्रदेश की खनिज सम्पदा 11. भू-क्षरण कारण एवं निवारण 12. ओजोन परत का क्षरण 13. ऊर्जा के पर्यावरण मित्र विकल्प 14. नदियों का संरक्षण 15. घटते चरागाह वनों पर बढ़ता दवाब 16. पर्यावरण संरक्षण में जन भागीदारी आवश्यक क्यों ? 17. धरती की यह है पीर । न है जंगल न है नीर ॥ 18. पर्यावरण से प्रीत, हगारी परम्परा और रीत 19. जंगल क्यों नाराज हैं ? 20. इको क्लब – बच्चों की सेवा की उपादेयता 21. तपती धरती 22. पर्यावरण और जैव विविधता के विभिन्न आयाम | 1. प्रकृति संरक्षण का महत्व 2. जल और जंगल का संरक्षण 3. वन संपदा और वन्य जीवों का संरक्षण 4. धरती का लिबास, पेड़, पौधे, घास 5. विश्व पर्यावरण दिवस 6. नर्मदा- प्रदेश की जीवन रेखा 7. ताल-तलैया – प्रकृति के श्रृंगार 8. पेड़, पहाड़ों के गहने 9. कचरे के दुष्प्रभाव 10. मोगली का परिवार 11. किचन गार्डन 12. पोलीथिन के दुष्प्रभाव 13. वृक्षों की उपादेयता 14. जब पक्षी नहीं होंगे 15. जंगल क्यों नाराज हैं ? 16 राष्ट्रीय उद्यान 17. ओजोन परत का क्षरण 18. जल जनित बीमारियां 19. नदी का महत्व 20. पर्यावरण के प्रति हमारे कर्तव्य 21. मानव जीवन पर पर्यावरण का प्रभाव 22. हमारी संस्कृति में जैव विविधता का महत्व |