कला शिक्षण का उद्देश्य कलाकार का निर्माण नहीं बल्कि कलाबोध और कलात्मक व्यवहार को विकसित करना है । इसके लिए अलग से कला विषय की जरूरत नहीं है बल्कि हर विषय के शिक्षण में, शाला की साज-सज्जा में और दैनिक व वार्षिक गतिविधियां में कलात्मकता का पुट समाहित करना अधिक उपयोगी है ।
कला शिक्षण को लेकर नंदलाल बसु के यह विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक है, जितने कि उस समय थे, जब भारत में नई शिक्षा की बुनियाद रखी जा रही थी । उनके अनुसार स्कूलों में कला शिक्षण का उद्देश्य कला के प्रति एक पारखी नजर विकसित करना और जीवन के हर पहलू में कला बोध का अंतः करण करना है, फिर चाहे वो टेबल पर सलीके से अपना सामान जमाना, या सूखने के लिए कपड़े टांगना ही क्यों ना हो ।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में विद्यार्थी को शिक्षा के साथ कौशल से जोड़ना पहली प्राथमिकता है । विद्यार्थी पाठ्यक्रम के साथ ही व्यवहार ज्ञान प्राप्त कर सकें । साथ ही भी PIsA जैसे अंतरराष्ट्रीय मानकों पर शिक्षा प्राप्त करें । इसी उद्देश्य से दृश्य एवं प्रदर्शन कला की गतिविधि आयोजित की जाती है ।
कला से जीवन को दृष्टि मिलती है । कला संवेदना का वह स्रोत है जो पूरी दुनिया को एक दूसरे से जोड़े रखने का काम करती है । बुद्धि को भी प्रखरता प्रदान करती है । यही वजह है कि दुनिया के अधिकांश बड़े वैज्ञानिक किसी न किसी रूप में जुड़े हुए थे ,चाहे अल्बर्ट आइंस्टाइन का पियानो वादन हो या हमारे मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम का वीणा वादन ।
कला के मुख्यतः दो रूप होते हैं : Visual Art या दृश्य कला और Performing Art या प्रदर्शन कला । Visual Art के अंतर्गत चित्रकला, मूर्तिकला एवं वास्तुकला जैसी कलाएं आती हैं । और Performing Art के अंतर्गत संगीत, नृत्य, नाटक, फिल्म और काव्य पाठ जैसी कलाएं आती हैं ।
प्रदर्शन कलाओं के उद्देश्य :
बच्चे को अपने आसपास के माहौल जिसमें कक्षा, विद्यालय, घर और समुदाय सम्मिलित हैं, स्वच्छ और सुंदर रखने के लिए कलात्मक विधाओं का प्रयोग करना सिखाना जिसमें उन्हें आनंद आता हो ।
बच्चे को जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अपने प्रखर विचार और भावनाओं को स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त करना सिखाना
बच्चे में निरीक्षण अन्वेषण एवं अभिव्यक्ति द्वारा सभी संवेदना ओं का विकास करना
अपने शरीर की गति संचालन एवं समन्वयन को समझने के योग्य बनाना
श्वास एवं बाह्य अभिव्यक्ति से एक लयात्मक संवेदना विकसित करना
विभिन्न शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य विधाओं को पहचानने के योग्य बनना
राष्ट्रीय विरासत एवं देश की सांस्कृतिक विविधता से विद्यार्थियों को अवगत कराना
विभिन्न तकनीकियों एवं माध्यमों द्वारा द्वि एवं त्रि आयामी दृश्य कला में प्रयोग कर अपनी सृजनात्मक अभिव्यक्ति एवं कलात्मकता का विकास करना
विषय वस्तु, विधियां एवं सामग्री
लेखांकन तथा चित्रकला
विद्यार्थियों में कला के प्रति रुचि को बढ़ाने के उद्देश्य से सतत एवं व्यापक अधिगम शिक्षण पद्धति के अंतर्गत प्रत्येक माह के चौथे शनिवार को स्कूलों में दृश्य एवं प्रदर्शनकारी कलाओं से संबंधित गतिविधियों का संचालन किया जाएगा ।
दृश्य एवं प्रदर्शन कौशल के अंतर्गत संचालित की जाने वाली गतिविधियां
नृत्य कला
भारतीय संस्कृति में नृत्य का बड़ा महत्व रहा है । भगवान शिव के तांडव से लेकर पंडित बिरजू महाराज के कत्थक तक, कला की यह विधा विभिन्न तरीके से हमारे जीवन में शामिल रही है । नृत्य की अनेक शैलियाँ हैं जैसे भरतनाट्यम, कुचिपुड़ी, कत्थक और सालसा । हर नृत्य की अपनी अलग विशेषता और अलग आकर्षण है ।
नृत्य शिक्षण को औपचारिक पाठ्यचर्या में सम्मिलित करने के विशेष लाभ हैं जो संभवतः केवल भारतीय नृत्य अभ्यास पद्धती के अभ्यास में ही मिलते हैं ।
चूंकि शास्त्रीय नृत्य, गति, संगीत, अभिव्यक्ति, साहित्य दर्शन, पौराणिक कथाओं, लय, छंद, योग एवं साधना जैसे सौन्दर्य के अनुभवों की परिणति का माध्यम है । यदि इसे अच्छी तरह से शिक्षा में शामिल किया जाए तो औपचारिक शिक्षा पद्धति की अनेक समस्याओं का स्वयं ही निदान हो जाएगा । इसके कुछ लाभ निम्न है: –
नृत्य कला के लाभ :
नृत्य के माध्यम से शिक्षार्थी अपने शरीर का ज्ञान प्राप्त करते हैं, किस प्रकार उन्हें खड़ा होना चाहिए, श्वास लेना चाहिए, अपनी रीड की हड्डी को किस प्रकार रखना चाहिए और किस प्रकार चलना चाहिए इत्यादि ।
नृत्य से व्यक्ति में संवेदना का विकास होता है ऐसे समाज में जहां भावनाओं को दबाकर रखना पड़ता है तथा अभिव्यक्ति के सीमित माध्यम हो, वहां नृत्य के माध्यम से मानव संवेदना की अभिव्यक्ति होती है और अंदर और बाहर सामंजस्य की स्थापना होती है ।
नृत्य से एकाग्रता, मानसिक एवं शारीरिक चेतना, शिघृता से प्रतिक्रिया व्यक्त करने में सुधार और शारीरिक क्षमता का विकास होता है । तनाव कम करने में भी सहायक सिद्ध होता है ।
नृत्य के प्रशिक्षण से स्मरण शक्ति तीव्र होती है, केवल नृत्य से ही इस बात का पता चलता है कि शरीर की अपनी स्मरण शक्ति है ।
अन्य कलारूपों के साथ इसका संबंध होने से मस्तिष्क में सोचो का विस्तार होता है । किसी भी कला का विकास एकांत में नहीं होता । प्रत्येक कला में अन्य कलाओं की झलक होती है । संगीत, नृत्य का एक अभिन्न अंग है और कविता, चित्रकला एवं मूर्तिकला भली-भांति जुड़े हुए हैं । नृत्य केवल एक शारीरिक गतिविधि नया होकर सांस्कृतिक विरासत को जानने का संपूर्ण अनुभव है ।
गतिविधि के दौरान विद्यार्थियों को विषय विशेषज्ञ शिक्षकों द्वारा विभिन्न नृत्यों की शिक्षा दी जाती है । नृत्य प्रस्तुति कराई जाती है, नृत्य की बारीकियां बताई जाती है एवं उन्हें मंच प्रस्तुति के लिए तैयार किया जाता है । शिक्षा में नृत्य की इन कलाओं का उपयोग, बच्चों में रचनात्मकता का संचार करता है और ग्रुप डांस जैसी गतिविधियों से एक दूसरे के सहयोग जैसी भावना का विकास करता है । नृत्य के माध्यम से बच्चे देश की संस्कृति, लोक कला एवं सांस्कृतिक विरासत को जानते हैं और उससे बहुत कुछ सीखते हैं । नृत्य केवल संस्कृति की पहचान या कलात्मक अभिव्यक्ति ही नहीं है बल्कि विद्यार्थियों में शारीरिक स्वास्थ्य और उत्साह वर्धन का स्रोत भी है । हमें इस गतिविधि से विद्यार्थियों में इन्हीं सब गुणों का विकास करना है ।
संगीत
उच्च प्राथमिक स्तर के बच्चों में संगीत के दोनों रूपों गायन तथा वादन के प्रति संवेदनशीलता को विकसित करने के योग्य होना चाहिए । सामूहिक गायन, लोक गायन, देशभक्ति के गीत एवं भजन भी सिखाया जा सकते हैं । बच्चे अपने घर के सदस्यों से पारंपरिक गायन वादन सीख सकते हैं और उन्हें कक्षा या विद्यालय में किसी अवसर पर प्रस्तुत करने के लिए उत्साहित किया जाना चाहिए । प्रत्येक विद्यार्थी को अपने प्रदर्शन में सुधार और विभिन्न गतिविधियों में भाग लेने के लिए अवसर दिया जाना चाहिए जैसे सामूहिक गायन, वादन, आर्केस्ट्रा, युगल गीत, तीन लोगों के साथ के भी गीत इत्यादि । इसे इस स्तर पर विद्यार्थियों द्वारा विकसित किया जाना चाहिए ।
शिक्षा को अधिक रूढ़िवादी ढंग से न देते हुए नए मौलिक तरीकों के लिए भी गुंजाइश रखनी चाहिए । विद्यार्थियों को विभिन्न समकालीन संगीतकारों, गायकों के बारे में बताना चाहिए । विभिन्न प्रकार की गतिविधियों एवं परियोजना कार्यों के माध्यम से उन्हें गायन शैली के बारे में सूचना एकत्रित करने के लिए कहना चाहिए और उन्हें कक्षा में प्रदर्शित किया जाना चाहिए । स्थानीय समुदाय, क्षेत्र के संगीतकारों को इस स्तर पर विद्यार्थियों को सिखाने की संभावना की खोज करनी चाहिए । दृश्य श्रव्य साधनों के माध्यम से शिक्षक उन्हें यथासंभव शास्त्रीय संगीत को सुनाने, दिखाने का प्रबंध कर सकते हैं । विद्यार्थियों पर न केवल पाठ्यचर्या का बोझ कम होगा बल्कि उनके मन में चल रहे द्वदों को भी कम करने में सहायता मिलेगी । साथ ही उनके भीतर की भावनाओं को भी बाहर निकलने का मौका मिलेगा ।
संगीत की सहायता से सृजनात्मक अभिव्यक्ति द्वारा उन्नत सौंदर्य बोध विकसित होने के कारण विद्यार्थी को भावनात्मक संतुलन एवं सामंजस्य स्थापित करने में सहायता मिलती है । इस स्तर पर विषय एक विधा का स्वरूप ले लेता है , जिसे उच्च शिक्षा के स्तर पर भी जारी रखा जा सकता है । यह एक निर्णायक घड़ी है जहां स्कूली शिक्षा को उच्च शिक्षा से जोड़ा जाता है । संगीत की शिक्षा को महाविद्यालय के शिक्षा के साथ भी जोड़ा जाना चाहिए ।
नाटक या ड्रामा
नाटक को मनोरंजन का एक माध्यम माना जाता है । इसका मुख्य उद्देश्य अपने विचारों, भावनाओं को अभिव्यक्त करने एवं समाज की अच्छी बुरी प्रथाओं, घटनाओं आदि को रोचक ढंग से लोगों तक पहुंचाना है ।
इस गतिविधि के अंतर्गत विद्यार्थियों को नाटक सिखाने का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों के शारीरिक एवं मानसिक क्षमता का विकास करना एवं उनमें अपनी कला व संस्कृति के प्रति जागरूकता लाना है । इस गतिविधि में विद्यार्थी को नाटक प्रस्तुति को क्रमबद्ध तरीके से समझाया जाता है ।
गतिविधि के दौरान नाटक विशेषज्ञ शिक्षक द्वारा सबसे पहले उस माह की थीम के अनुसार किसी एक नाटक का चयन किया जाता है । उसके बाद उस नाटक की रीडिंग की जाती है, पात्रों का चयन किया जाता है, नाटक में लगने वाली सामग्री तैयार की जाती है, डिजाइनिंग कराई जाती है, साथ ही रिहर्सल के दौरान लगातार डायलॉग अभ्यास कराया जाता है और अंत में विद्यार्थियों द्वारा नाटक की प्रस्तुति की जाती है ।
यह गतिविधि विद्यार्थियों के लिए कला क्षेत्र में नए द्वार खोलती ही है बल्कि विद्यार्थी को संवेदनशील बनाते हुए आनंद प्राप्त करते हैं । उनमें जागरूकता का संचार करती है बेहतर संवाद सिखाती है , टीम भावना का कौशल जगाती है ।
समझा जाए तो यह आनंद देता है, बाल्यावस्था खेलने के लिए होती है, चाहे वह अपने साथियों के साथ, पालतू पशुओं के साथ अथवा वास्तविक जीवन के साथ हो ।नाटक की ऐसी प्रक्रिया के माध्यम से बच्चे कदम कदम पर एक ढांचागत तरीके से जगत में व्याप्त वस्तुओं की खोज और उनका अनुभव प्राप्त करते हैं । इसके अतिरिक्त और भी बहुत सी उपयोगिता हैं ।
इससे अभिव्यक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है और कल्पनाशीलता का बोध होता है । इससे सामाजिक एवं बौद्धिक विशेषकर Role Play से जागरूकता आती है । बच्चे की अभिव्यक्ति और वाणी विकसित होती है । आत्मज्ञान, स्वाभिमान एवं स्वयं पर विश्वास का बोध होता है । इससे बच्चों को दूसरे के साथ सहकारिता से कार्य करना, एक दूसरे की मदद करना और विचारों के तालमेल एवं संगठन की क्षमता विकसित होती है ।
नाटक से एक प्रकार की अनुशासन शीलता आती है । एक निश्चित अवधि में किसी कार्य को किस प्रकार संपन्न किया जा सकता है और एक समूह में कैसे प्रस्तुत किया जा सकता है, इसके लिए समस्या को सुलझाने और साधनों में भाग लेने से भौतिक एवं शारीरिक स्वस्थता रहती है । इसका प्रभाव भी होता है जिससे यथार्थ जीवन में सामाजिक नाटक, दूसरों की समस्याओं का समाधान करने में सक्षम होते हैं अथवा अपने भीतर में हिंसा एवं मनोवैज्ञानिक नाटक के माध्यम से तनाव निकालकर शांति स्थापित करने में सहायक होते हैं । नाटक से सामाजिक एवं नैतिक शिक्षा प्राप्त होता है और वह युवाओं को भावनात्मक रूप से परिपक्व होने में मददगार साबित होता है कि भविष्य की भूमिका निभाने के लिए तैयार होते हैं ।
नाटक से संबंधित गतिविधियां प्रत्येक बच्चे को उसकी आवश्यकता को ध्यान में रखकर कराई जानी चाहिए जैसे :
विशेष शारीरिक आवश्यकता वाले बच्चों के लिए :
वर्णन, कहानी कहना और वाणी संबंधी गतिविधि
ध्वनि एवं संगीत पर आधारित कठपुतली संबंधी औपचारिक नाटक जिसकी योजना और निर्देश स्पष्ट हो
जो बच्चे देख ना सकते हो उनके लिए
वर्णन, कहानी कहना और वाणी संबंधी गतिविधि
ध्वनि एवं संगीत पर आधारित संगीत
वाद्य यंत्र को बजाना
भावनात्मक अथवा मानसिक रूप से पीड़ित बच्चों के लिए
भूमिका निर्वाह, इंप्रोवाइजेशन,
संगीत एवं नृत्य पर आधारित मुखोटे एवं कठपुतली बनाना
नाटक की इस गतिविधि में 21वीं सदी के कौशलों में सफलता के लिए आवश्यक 4 C’s का समावेश होता है । जो विद्यार्थी क्रिएटिविटी, कम्युनिकेशन, क्रिटिकल थिंकिंग, collaboration कौशल के साथ सीखता है ।
ड्रॉइंग एण्ड पेंटिंग
कागज पर उकेरी गई कुछ आड़ी तिरछी लकीरों को एक सुंदर कलाकृति में बदलने का सामर्थ्य केवल कलाकार में होता है । खाली कैनवास पर रंगों को बिखेरते हुए खूबसूरत कलाकारी का होना, एक आम इंसान को चित्रकार बनाता है । ड्राइंग पेंटिंग के इसी हुनर को विद्यार्थियों तक पहुंचाने के लिए सीसीएलई के अंतर्गत इस गतिविधि का संचालन किया जाता है ।
इसमें विद्यार्थियों को दी गई थीम पर चित्रकारी ड्राइंग करने का टास्क दिया जाता है और उन्हें इस विधा की बारीकियों से परिचित कराया जाता है । इस गतिविधि को करने से विद्यार्थियों में रचनात्मकता का संचार होता है, उनमें कला के प्रति रुचि जागृत होती है तो वहीं दूसरी और विद्यार्थी आने वाले समय में पेंटर और आर्किटेक्ट जैसे करियर्स के लिए भी स्कूल के समय से तैयार होते हैं ।
क्राफ्ट गतिविधियां
अपशिष्ट प्रबंधन एक विश्वव्यापी समस्या है । प्रबंधन के अभाव में हमें कई गंभीर समस्याओं का आए दिन सामना करना पड़ता है । हाल ही में प्रकाशित यूएनडीपी की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में कुल 400 मिलियन टन सिंगल यूज प्लास्टिक की खपत होती है । छात्रों में इस विषय के प्रति समझ विकसित करने एवं उन्हें आसपास मौजूद अपशिष्ट पदार्थों से नई रचनात्मक एवं उपयोगी वस्तुओं के निर्माण के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से इस गतिविधि का संचालन किया जाता है ।
इस गतिविधि के तहत विद्यार्थियों द्वारा अपने आसपास से अनुपयोगी वस्तुएं इकट्ठी की जाती है । उसके बाद इन अपशिष्ट वस्तुओं का वर्गीकरण करते हुए, रचनात्मकता के अनुसार विद्यार्थियों द्वारा इन वस्तुओं से कलाकृति का निर्माण किया जाता है । इस गतिविधि से विद्यार्थियों में बेहतर रचनात्मकता मौलिक चिंतन व तार्किक सोच कौशलों का विकास होता है और अपशिष्ट से बनी कलाकृतियां उन्हें रचनात्मकता के साथ पर्यावरण प्रबंधन के लिए भी प्रेरित करती है । इस गतिविधि से विद्यार्थियों में आत्मनिर्भर बनाने की सोच का संचार भी होता है ।
उपसंहार
शिक्षा के लिए जरूरी है कि शिक्षक विद्यार्थियों से लगातार मिले और उनके बारे में बातचीत करे । वह कक्षा में क्या करना चाहते हैं बजाय इसके कि हमेशा आदेशात्मक स्वर में बात करें । बच्चे स्वयं को महत्वपूर्ण समझते हैं । अपने अनुभव के बारे में कक्षा के अन्य विद्यार्थियों को बताते हैं । ज्ञान के आदान-प्रदान का एक शिक्षक को भी अपने सीखने के अनुभवों पर बच्चों से बातचीत करनी चाहिए और विभिन्न गतिविधियों में भाग लेना चाहिए । शिक्षकों को अपने कक्षा के अनुभवों को विद्यालय के दूसरे शिक्षकों और दूसरे विद्यालय के शिक्षकों से भी बांटना चाहिए । विभिन्न विद्यालयों के कला शिक्षकों का एक संगठन होना चाहिए, जहां वे शिक्षण अधिगम और मूल्यांकन के अच्छे प्रचलनो का आदान प्रदान कर सकें ।
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21st Century Skills : 21 वी सदी के कौशल
CCLE की मासिक थीम पर आधारित गतिविधि
CCLE अंतर्गत प्राचार्य और शिक्षकों की भूमिका और दायित्व
प्रथम सप्ताह : लेखन कौशल आधारित गतिविधियां
द्वितीय सप्ताह : भाषण आधारित गतिविधियां : Speech Based Activities
तृतीय सप्ताह : प्रश्नोत्तरी आधारित गतिविधियां : Quiz Based Activities
चतुर्थ सप्ताह : प्रदर्शन आधारित गतिविधियां : Presentation Based Activities
21 वी सदी कौशल आधारित गतिविधियों का मूल्यांकन : 21st Century Skills Evaluation